जबलपुर की सड़कों पर गुंडाराज:अब सच बोलना मौत को दावत देना है क्या?
जबलपुर।पत्रकारों का काम है सच उजागर करना, लेकिन जब सच बोलना ही जानलेवा साबित हो जाए तो सवाल पूरे सिस्टम पर खड़े होते हैं।जबलपुर में पत्रकार सुनील सेन पर हुआ हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं था,बल्कि लोकतंत्र की जड़ पर प्रहार है और सबसे हैरानी की बात यह कि इस हमले का मास्टरमाइंड कोई गुंडा या माफिया नहीं,बल्कि सफेदपोश हॉस्पिटल डायरेक्टर अमित खरे निकला।क्या सच बोलना गुनाह हो गया है?
एक पत्रकार ने स्मार्ट सिटी हॉस्पिटल में हो रहे कथित फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया।लेकिन इस ईमानदार कोशिश का इनाम क्या मिला?–मौत से मारने की साजिश!यह सिर्फ सुनील सेन की कहानी नहीं है,बल्कि उन सभी पत्रकारों की हालत बयान करती है जो रोज़ भ्रष्टाचार,माफियागिरी और फर्जीवाड़े के खिलाफ लिखते हैं।पुलिस और सिस्टम की चुप्पी क्यों?
•जब पत्रकार को धमकियां मिल रही थीं तो सुरक्षा क्यों नहीं दी गई?
•आखिर ऐसे हॉस्पिटल माफिया के खिलाफ प्रशासन पहले से कार्रवाई क्यों नहीं करता?
•क्या पुलिस दबाव में है या फिर नेताओं और पैसों के खेल में पत्रकारों की जान की कोई कीमत ही नहीं?
लोकतंत्र का काला चेहरा
आज हालत यह है कि कलम की ताकत रखने वाले पत्रकारों को गुंडे और सफेदपोश माफिया खुलेआम धमका रहे हैं।लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कुचलने की साजिश हो रही है,अगर अब भी समाज और सिस्टम चुप रहा तो कल हर आवाज़ दबा दी जाएगी।
अब वक्त है जागने का
यह हमला हमें चेतावनी देता है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून और तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।वरना सच लिखने वाले कलमकार सड़क पर खून से लथपथ मिलते रहेंगे और लोकतंत्र सिर्फ कागज़ों में ही जिंदा रहेगा।

