डिग्री मिल गई,नौकरी नहीं"—नेताजी मेडिकल कॉलेज के गेट पर धरने पर बैठी नर्सिंग छात्राओं की दर्दभरी कहानी
जबलपुर/नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में दोपहर की धूप में कॉलेज के मेन गेट के सामने सफेद यूनिफॉर्म में बैठी लड़कियां हाथ में प्लेकार्ड लिए नारे नहीं लगा रहीं,बस चुपचाप बैठी हैं।चेहरों पर थकान है, आंखों में नाराज़गी और आवाज़ में टूटन,ये वे नर्सिंग छात्राएं हैं,जिन्होंने तीन साल पहले डिग्री हासिल की, लेकिन सरकारी जॉइनिंग का आदेश अब तक नहीं आया।"हमारा बॉन्ड है,हम कहीं और काम भी नहीं कर सकते,"मनीषा अग्रवाल की आंखें भर आती हैं,
"रीवा,भोपाल और ग्वालियर की लड़कियों को नौकरी दे दी,पर जबलपुर वालों को हर बार टरका दिया।"
पास बैठी एक और छात्रा कहती है,
"तीन साल से घर का खर्च,पढ़ाई का लोन,सबका बोझ हमारे ऊपर है।बॉन्ड की वजह से प्राइवेट जॉब का भी रास्ता बंद है।"
सरकारी वादा,अधूरी हकीकत
सरकार ने नर्सिंग की पढ़ाई शुरू करते समय इन छात्राओं से बॉन्ड साइन करवाया था—5 साल सरकारी सेवा में रहना होगा,लेकिन अब सरकार कह रही है कि पद खाली नहीं हैं।
कॉलेज के डीन नवनीत सक्सेना का कहना है —
"यह सिर्फ जबलपुर की नहीं,पूरे प्रदेश की समस्या है।कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन से बात हुई है,15 दिन में समाधान का आश्वासन मिला है।"
धरने का माहौल
जमीन पर बिछी चादरों पर बैठी छात्राएं आपस में बातें करती हैं,कोई फोन पर घर से बात कर रही है,कोई चुपचाप फर्श को देख रही है।हाथ में पकड़े पोस्टर पर लिखा है —"बॉन्ड से बांधकर बेरोजगार क्यों?"
पास खड़े गार्ड भी अब इस भीड़ के आदी हो गए हैं। कॉलेज के भीतर स्टाफ अपने काम में लगा है,बाहर छात्राएं अपने भविष्य के फैसले का इंतज़ार कर रही हैं।
सवाल सिर्फ नौकरी का नहीं
ये धरना एक बड़े सवाल को जन्म देता है—क्या सरकार को बॉन्ड के तहत जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए?अगर छात्राओं को समय पर नौकरी नहीं दी जा सकती,तो क्या उन्हें प्राइवेट सेक्टर में जाने की आज़ादी नहीं मिलनी चाहिए?
फिलहाल,छात्राएं कॉलेज गेट पर डटी हैं।उन्हें उम्मीद है कि इस बार जवाब मिलेगा—और अगर नहीं मिला, तो उनकी खामोशी नारे में बदलेगी।
