Political News:"कर्ज की गांठ पर बंधी राखी:बहनों की मुस्कान के पीछे 4300 करोड़ की उधारी"

"कर्ज की गांठ पर बंधी राखी:बहनों की मुस्कान के पीछे 4300 करोड़ की उधारी"

भोपाल।

रक्षाबंधन की डोर इस बार बहनों की कलाई पर नहीं, मध्यप्रदेश सरकार की कर्ज की गांठ पर बंधी है। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने 9 अगस्त को लाड़ली बहनों को 250 रुपये अतिरिक्त देने की घोषणा की है —लेकिन इस ‘उपहार’ के लिए राज्य को 4300 करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ रहा है।

यह सिर्फ एक "उपहार" नहीं, वित्तीय भविष्य के नाम एक उधारी का वचनपत्र है, जिससे प्रदेश पर कुल कर्ज बढ़कर 4.40 लाख करोड़ रुपये से भी ऊपर पहुंच जाएगा।

रक्षाबंधन के नाम पर ऋणबंधन

सिर्फ जुलाई महीने की बात करें तो प्रदेश सरकार पहले ही 4800 करोड़(8 जुलाई)का कर्ज ले चुकी है, और अब 30 जुलाई को 4300 करोड़ और लेने जा रही है।

यानी एक महीने में ही 9100 करोड़ रुपये की उधारी —और ये राशि सिर्फ एक सामाजिक योजना की एक किस्त के लिए।

सरकार ने यह कर्ज 17 और 23 साल की अवधि के लिए आरबीआई के ज़रिए लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है,इसके भुगतान का बोझ आने वाले वर्षों तक सरकार और नागरिक दोनों पर बना रहेगा।

सवाल सिर्फ लाड़ली योजना का नहीं,सोच का है

राज्य दावा करता है कि वित्त वर्ष 2023–24 में उसके पास 12487 करोड़ रुपये का राजस्व सरप्लस था, फिर भी हर महीने नए कर्ज क्यों?

सरकार कहती है कि यह "जनकल्याण" है — लेकिन जब हर योजना उधारी पर टिके,तो कल्याण या कर्ज-दुखान —फर्क मिट जाता है।

फैक्ट्स जो सोचने पर मजबूर करेंगे

•लाड़ली बहनों को अगस्त में कुल 1250 रुपये प्रति लाभार्थी देना है

•इसमें से 250 रुपये रक्षाबंधन बोनस हैं, जिनके लिए सरकार को 317.50 करोड़ रुपये अलग से देने पड़ेंगे

•योजना में हर महीने 1543 करोड़ रुपये का खर्च पहले से तय है

•इस माह सिर्फ एक स्कीम के लिए ही सरकार 9100 करोड़ रुपये की उधारी ले रही है

अर्थनीति या राजनीतिक रणनीति?

•सवाल यह है कि क्या जनकल्याण की योजनाएं अब पॉलिटिकल बोनस बन गई हैं?

•क्या त्योहार अब राजकोषीय तिथियां बन चुके हैं?

•और क्या ‘लाड़ली’ की मुस्कान भविष्य की पीढ़ियों के करदाताओं की आंखों में कर्ज का धुंध नहीं छोड़ रही?

एक पंक्ति में निष्कर्ष

"लाड़ली योजना में जोड़े गए 250 रुपये,अगले 25 वर्षों तक बजट से काटे जाएंगे।"

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