"PhD अब प्रतिभा नहीं,पैसे से तय?सरकारी यूनिवर्सिटी की सख्ती,निजी की कमाई!"
मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा का हाल कुछ ऐसा हो गया है कि पीएचडी की डिग्री अब केवल ज्ञान नहीं,जेब की गहराई से तय हो रही है।सरकारी विश्वविद्यालयों ने पीएचडी में प्रवेश के लिए NET स्कोर को एकमात्र पात्रता मान लिया है,जबकि निजी यूनिवर्सिटी अब भी छात्रों को नेट और एंट्रेंस एग्जाम — दोनों विकल्प दे रही हैं।इस फैसले का असर ये है कि 60% सीटें खाली हैं,और छात्र लाखों खर्च कर प्राइवेट संस्थानों का रुख कर रहे हैं।
बीयू में 2379 सीटें,आधे से ज्यादा खाली
बर्कतउल्ला विश्वविद्यालय (BU) में करीब 40 विषयों में 2379 सीटें हैं,लेकिन NET स्कोर को अनिवार्य कर दिए जाने के बाद छात्रों की रुचि घट गई है। विश्वविद्यालय की नीति के अनुसार,70% वेटेज NET स्कोर और 30% इंटरव्यू को दिया गया है।यूजीसी की शर्त है कि NET स्कोर एक वर्ष तक ही मान्य होता है, यानी हर साल हजारों छात्र इस पात्रता से बाहर हो जाते हैं।
नतीजा—विकल्प नहीं,मजबूरी बनी प्राइवेट यूनिवर्सिटी
जहां एक ओर सरकारी विश्वविद्यालय विकल्प बंद कर रहे हैं,वहीं निजी विश्वविद्यालय अब भी प्रवेश परीक्षा और NET—दोनों के आधार पर प्रवेश दे रहे हैं।
लेकिन कीमत भारी है,सरकारी संस्थानों में जहां पीएचडी की कुल फीस ₹90,000 से ₹1 लाख तक है,वहीं निजी संस्थानों में यही डिग्री ₹3 से ₹4 लाख में मिल रही है।
नीति या विडंबना?
इस स्थिति को लेकर पूर्व रजिस्ट्रार एच.एस. त्रिपाठी कहते हैं,“राज्य की यूनिवर्सिटी चाहें तो NET के साथ खुद की प्रवेश परीक्षा ले सकती हैं।बीयू को चाहिए कि वह छात्रहित को प्राथमिकता दे,सीटें खाली रहना विश्वविद्यालय के लिए भी घाटे का सौदा है।”
वहीं मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष डॉ. भरत शरण सिंह का कहना है कि,“हम NET और JRF को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन प्रवेश परीक्षा का अधिकार भी विश्वविद्यालयों के पास है—नियमों का अध्ययन किया जाना चाहिए।”
निष्कर्ष:
इस वक्त मध्यप्रदेश में पीएचडी के लिए सरकारी रास्ते संकरे और निजी रास्ते महंगे हो गए हैं,योग्य छात्र भी NET न होने के कारण प्रवेश से वंचित हैं और डिग्री पाने के लिए जेब ढीली कर रहे हैं।ऐसे में सवाल यह है कि उच्च शिक्षा का उद्देश्य क्या अब सिर्फ आय का माध्यम बनकर रह गया है?