जबलपुर में एक ऐसा गोरखधंधा चल रहा है, जो शासन की आंखों के सामने है लेकिन कार्रवाई कहीं नहीं। शराब ठेकेदारों का एक संगठित 'सिंडिकेट' एमआरपी से ऊपर शराब बेच रहा है। और हैरानी की बात यह है कि इसके पीछे आबकारी विभाग का मौन समर्थन भी याचिका में दर्शाया गया है।
याचिकाकर्ता दीपांशु साहू की तरफ से अधिवक्ता अमित खत्री ने कोर्ट में जो तथ्य प्रस्तुत किए हैं,वे चौंकाने वाले हैं —बिना रसीद,बिना टैक्स और बिना किसी दर सूची के शराब बिक रही है। शिकायतों के बावजूद ठेकेदारों से सिर्फ कागज पर 'माफीनामा' लेकर मामले रफा-दफा किए जा रहे हैं।
अब हाईकोर्ट ने इस पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि चार सप्ताह में जवाब दो — वरना अगला आदेश कठोर हो सकता है।
क्या ये मामला सिर्फ ओवरप्राइसिंग का है या फिर एक बड़े राजस्व घोटाले की आहट है?