आउटसोर्सिंग घोटाले की आहट?मेडिकल कॉलेजों की जांच निजी एजेंसी को सौंपने पर भड़के डॉक्टर,CM से बोले-“मरीजों की जान से मत खेलो”
भोपाल।मध्यप्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में मरीजों की जांच आउटसोर्स एजेंसियों से कराने के फैसले पर विवाद गहराता जा रहा है।डॉक्टरों ने इस कदम को“स्वास्थ्य व्यवस्था को निजी कंपनियों के हवाले करने की साजिश”बताया है।प्रोग्रेसिव मेडिकल टीचर एसोसिएशन(PMTA) ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चेतावनी दी है कि यह आदेश मरीजों की जान और मेडिकल शिक्षा दोनों के साथ खिलवाड़ है।22 साल की मेहनत पर पानी
डॉक्टरों का कहना है कि पिछले 22 वर्षों से मेडिकल कॉलेजों के पैथोलॉजी विभाग ने ही सभी जांचें की हैं।यहाँ प्रशिक्षित डॉक्टरों और टेक्नीशियनों की पूरी टीम मौजूद है।लेकिन सरकार ने अचानक आउटसोर्स एजेंसी थोपकर कॉलेजों के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए।
शिक्षा और इलाज दोनों पर खतरा
•छात्रों का भविष्य दांव पर–एमबीबीएस और पीजी विद्यार्थियों की पढ़ाई पैथोलॉजी लैब पर आधारित है। अगर जांच एजेंसियां करेंगी तो छात्रों का प्रैक्टिकल नॉलेज खत्म हो जाएगा।
•मरीजों की जान से खिलवाड़–निजी कंपनियां मुनाफे के लिए काम करेंगी,ऐसे में जांच रिपोर्ट की विश्वसनीयता संदिग्ध होगी,गलत रिपोर्ट आने पर जिम्मेदारी तय करना नामुमकिन होगा।
भ्रष्टाचार की जड़ बनेगी आउटसोर्सिंग
डॉक्टरों का दावा है कि निजी कंपनियों को जांच सौंपने से दलालों,अधिकारियों और ठेकेदारों का खेल शुरू होगा,इससे न केवल भ्रष्टाचार बढ़ेगा बल्कि अस्पतालों में गुटबाजी भी गहरी होगी।
डॉक्टरों की सीधी चेतावनी
एसोसिएशन ने कहा –
👉“अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया तो मेडिकल कॉलेजों की गुणवत्ता खत्म हो जाएगी और मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी।”
👉“यह फैसला सिर्फ निजी एजेंसियों को फायदा पहुंचाने के लिए लिया गया है,जिसका खामियाजा पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को भुगतना होगा।”
तत्काल आदेश रद्द करने की मांग
डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री से कहा है कि आउटसोर्सिंग का आदेश तुरंत रद्द किया जाए।जांच का काम मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टरों,पीजी छात्रों और टेक्नीशियनों से ही कराया जाए ताकि पारदर्शिता और गुणवत्ता बनी रहे।