Politics News:ग्वारीघाट की हकीकत ने खोली‘स्वच्छता रैंकिंग’की परतें,5वें नंबर पर शहर और घाट पर गंदगी!

ग्वारीघाट की हकीकत ने खोली‘स्वच्छता रैंकिंग’ की परतें,5वें नंबर पर शहर और घाट पर गंदगी!

ग्वारीघाट का सच:रैंकिंग में चमक,जमीनी स्तर पर धुंध

जबलपुर में स्वच्छता रैंकिंग का जश्न,मगर ग्वारीघाट की तस्वीर कुछ और कहती है — नर्मदा किनारे मिट्टी के ढेर,प्लास्टिक का कचरा और सफाई पर उठे तीखे सवाल।

जबलपुर।स्वच्छता रैंकिंग में 5वें पायदान पर पहुंचा जबलपुर इन दिनों चर्चा में है,लेकिन ग्वारीघाट का हाल इस रैंकिंग की सच्चाई पर सवालिया निशान लगा रहा है।नर्मदा के पवित्र किनारे पर पिछले सात दिनों से मिट्टी के ढेर और प्लास्टिक-कचरे का साम्राज्य बना हुआ है,श्रद्धालुओं से लेकर स्थानीय निवासियों तक, सभी के लिए यह दृश्य निराशाजनक है।

जब पूजन के बीच छिपी रही गंदगी

महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू,अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने पर कल ही टीम के साथ ग्वारीघाट पहुंचे थे।नर्मदा पूजन की रस्म पूरी हुई,लेकिन घाट के चारों ओर फैले कचरे,पन्नी और बोतलों के ढेर पर न किसी ने ध्यान दिया,न कोई सफाई दल तुरंत सक्रिय हुआ,इस अनदेखी ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया — क्या रैंकिंग के पीछे का चेहरा यही है?

स्थानीय आवाज़ें,तीखी प्रतिक्रियाएं

घाट पर मौजूद दुकानदारों और श्रद्धालुओं ने साफ कहा — “रैंकिंग कागजों में अच्छी दिख रही है,लेकिन जमीन पर हालात वही पुराने हैं।”लोगों का मानना है कि यह उपलब्धि आंकड़ों और दिखावटी व्यवस्थाओं के सहारे हासिल की गई है,जबकि घाट जैसे संवेदनशील स्थलों की सफाई पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

रैंकिंग बनाम वास्तविकता

ग्वारीघाट की गंदगी न सिर्फ नगर निगम की तैयारी पर सवाल उठाती है,बल्कि यह भी दर्शाती है कि स्वच्छता रैंकिंग का पैमाना कहीं न कहीं अधूरा है।अगर शहर के प्रमुख धार्मिक स्थल का यह हाल है,तो बाकी इलाकों की कल्पना करना मुश्किल नहीं।

निष्कर्ष:अब वक्त है असली बदलाव का

जबलपुर की स्वच्छता रैंकिंग का जश्न तभी सार्थक होगा,जब ग्वारीघाट और अन्य सार्वजनिक स्थान वास्तव में साफ-सुथरे हों।रैंकिंग की बाजीगरी से आगे बढ़कर,स्थायी सफाई और निगरानी का सिस्टम जरूरी है,ताकि शहर कागजों पर नहीं,हकीकत में स्वच्छ दिखे।

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