“भ्रष्टाचार से तंग पार्षदों का बगावत मार्च:शिवपुरी नगर पालिका में 19 पार्षदों और उपाध्यक्ष ने छोड़ी कुर्सी,अध्यक्ष पर लगा‘तानाशाही’का ठप्पा”

“भ्रष्टाचार से तंग पार्षदों का बगावत मार्च:शिवपुरी नगर पालिका में 19पार्षदों और उपाध्यक्ष ने छोड़ी कुर्सी,अध्यक्ष पर लगा‘तानाशाही’का ठप्पा”

शिवपुरी।मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़ा धमाका! शिवपुरी नगर पालिका में भ्रष्टाचार और तानाशाही के आरोपों से तंग आकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों के 19 पार्षदों समेत उपाध्यक्ष ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया।यह प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है जब सत्ता और विपक्ष एकजुट होकर नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा के खिलाफ सड़कों पर उतर आए।

पार्षदों का आरोप है कि नगर पालिका अध्यक्ष ने संस्था को अपनी जागीर बना लिया है— “भ्रष्टाचार करो या चुप रहो,वरना सजा भुगतो” जैसी हठधर्मिता अब बर्दाश्त से बाहर हो गई।

बैंड-बाजे और नारेबाजी के साथ इस्तीफा

गुरुवार को सभी पार्षद बैंड-बाजे और जुलूस के साथ कलेक्ट्रेट पहुंचे।वहां उन्होंने जोरदार नारे लगाए—

👉“गायत्री शर्मा चोर है!”

👉“भ्रष्टाचार मुर्दाबाद!”

इस्तीफा लेने कोई बड़ा अधिकारी सामने नहीं आया तो नाराज पार्षद धरने पर बैठ गए और सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया।इससे पहले दो महीने पहले ही पार्षदों ने बगीचा सरकार मंदिर में शपथ ली थी कि अगर अध्यक्ष नहीं हटे तो वे इस्तीफा देंगे।

अविश्वास प्रस्ताव दबा,पर गुस्सा नहीं थमा

नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के दबाव में वापस ले लिया गया था।लेकिन आज का सामूहिक इस्तीफा साफ कर रहा है कि “पार्षदों का गुस्सा अब सियासी सौदेबाज़ी से काबू नहीं होगा।”

प्रशासन भी सन्न

अपर कलेक्टर दिनेश शुक्ला ने कहा—

👉“10 पार्षदों ने सामूहिक और 8 पार्षदों ने अलग-अलग इस्तीफे दिए हैं।यह न्यायालयीन मामला है, फिलहाल कलेक्टर को भेजा जाएगा।”

लेकिन मंजूरी होगी या नहीं—इस पर प्रशासन चुप है।

जनता के बीच बड़ा सवाल

•क्या नगर पालिका अध्यक्ष पर कार्रवाई होगी या सत्ता का कवच उन्हें बचा लेगा?

•क्या यह इस्तीफा नगर पालिका की राजनीति को नया मोड़ देगा?

•क्या बीजेपी-कांग्रेस पार्षदों की यह ‘असली गठबंधन’ आगे भी कायम रहेगा?

निचोड़

शिवपुरी नगर पालिका का सामूहिक इस्तीफा केवल एक स्थानीय घटना नहीं,बल्कि यह संदेश है कि भ्रष्टाचार और तानाशाही अब जनप्रतिनिधियों तक को बर्दाश्त नहीं है।

👉यह बगावत प्रदेश में नगर निकाय राजनीति की तस्वीर बदल सकती है।

अब गेंद सरकार के पाले में है—या तो अध्यक्ष पर एक्शन लें,या फिर जनता के सामने सवालों के घेरे में खड़े हों।

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