“मां नहीं, मौत की सौदागर: मीरां साहिब का मामला एक सभ्यता का पतन है”
एक समाज की पहचान उसके मूल मूल्यों से होती है — और उन मूल्यों में सबसे ऊंचा दर्जा मां के आंचल को दिया जाता है।
लेकिन जब वही आंचल हेरोइन की थैली में तब्दील हो जाए, और बेटा-बेटी उस थैली को लेकर सड़कों पर बेचते घूमे, तो समझिए कि यह सिर्फ एक ‘केस’ नहीं, एक ‘चेतावनी’ है।
यह मामला बताता है कि गरीबी से नहीं, लालच से अपराध जन्म लेता है। यह वह वक़्त है जब कानून को सख्त होना होगा, समाज को जागरूक और परिवार को आत्मविश्लेषी।