अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु विवाद एक बार फिर विस्फोटक मोड़ पर पहुंच गया है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति और रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपने पुराने तेवर दिखाते हुए ईरान को खुलेआम बमबारी की चेतावनी दी है। ट्रंप का यह बयान ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची की उस टिप्पणी के बाद आया है, जिसमें उन्होंने यूरेनियम संवर्धन को ईरान की "राष्ट्रीय शान" बताते हुए किसी भी तरह की रियायत से साफ इनकार कर दिया था।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया मंच "ट्रूथ सोशल" पर तीखा हमला बोलते हुए लिखा,
"हमारे पहले के हमलों ने ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों को नष्ट कर दिया था। अगर जरूरत पड़ी तो हम फिर से ईरान पर बम बरसाएंगे।"
यह बयान केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि आने वाले अमेरिकी चुनावों से पहले ट्रंप की फॉरेन पॉलिसी लाइन का संकेत भी माना जा रहा है — आक्रामक, एकतरफा और सैन्य विकल्पों को खुला छोड़ने वाला।
ईरान: “संवर्धन हमारा अधिकार और गर्व”
ट्रंप की धमकी से पहले ईरानी विदेश मंत्री अरागची ने बड़ा बयान देते हुए कहा था कि उनका देश किसी भी कीमत पर यूरेनियम संवर्धन नहीं छोड़ेगा।
उन्होंने कहा,
“हमारा संवर्धन कार्यक्रम हमारे वैज्ञानिकों की सालों की मेहनत है। यह अब सिर्फ तकनीक नहीं, राष्ट्रीय आत्मसम्मान का प्रतीक बन चुका है।”
अरागची का यह बयान उस समय आया है जब ईरान के कुछ परमाणु ठिकानों को हाल ही में हुए इजरायली हमलों में गंभीर नुकसान पहुंचा है। ईरानी अधिकारियों ने स्वीकार किया कि कुछ संवर्धन केंद्र अस्थायी रूप से ठप हो गए हैं, लेकिन वे दोबारा जल्द ही सक्रिय होंगे।
जड़ें गहरी, खतरा और गहराता
अमेरिका को संदेह है कि ईरान परमाणु ऊर्जा के नाम पर बम बनाने की दिशा में बढ़ चुका है।
आंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के निदेशक राफेल ग्रॉसी का भी दावा है कि ईरान बम बनाने लायक संवर्धन स्तर तक पहुंचने से मात्र हफ्तों की दूरी पर है।
हालांकि ईरान बार-बार यह कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल नागरिक उद्देश्यों — जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा — के लिए है।
तेहरान का यह रुख अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों को लगातार संदेह में डालता रहा है।
ट्रंप का युद्धोन्मादी रुख: वापसी की तैयारी या वैश्विक संकट का निमंत्रण?
डोनाल्ड ट्रंप के बयानों को केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया मानना कूटनीतिक भूल होगी। वे 2024 में एक बार फिर राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं, और अपनी पहले की नीति — "मैक्सिमम प्रेशर" — को दोहराते दिख रहे हैं।
याद दिला दें कि ट्रंप के ही कार्यकाल में अमेरिका ने 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से एकतरफा रूप से हाथ खींच लिया था।
उनकी वापसी की आशंका से अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर यूरोपीय संघ और IAEA चिंतित हैं कि कहीं फिर से कोई नया सैन्य संकट न खड़ा हो जाए।
क्या समझौते की गुंजाइश बची है?
बिडेन प्रशासन की अब तक की रणनीति रही है कि वह ईरान से कूटनीतिक बातचीत के जरिए परमाणु कार्यक्रम पर नियंत्रण की कोशिश करे। मगर ट्रंप के हालिया बयान के बाद ईरान का विश्वास और भी डगमगाया है।
संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ साझा संवर्धन व्यवस्था का अमेरिकी प्रस्ताव ईरान ने एक सिरे से ठुकरा दिया है। तेहरान का कहना है कि
“हम अपनी ज़रूरत की तकनीक दूसरे देशों पर निर्भर रहकर क्यों लें? यह हमारे अधिकार और आत्मनिर्भरता का मामला है।”
: ज्वालामुखी पर बैठे हैं सब – विस्फोट कभी भी संभव
ट्रंप की धमकी और ईरान की ज़िद — यह टकराव अब कूटनीतिक वाकयुद्ध से आगे बढ़कर सैन्य संघर्ष की कगार पर दिखने लगा है।
एक ओर ट्रंप जैसे नेता हैं जो बल का प्रदर्शन करना चाहते हैं, और दूसरी ओर ईरान जैसे देश हैं जो राष्ट्रवादी गरिमा को तिरस्कार नहीं मानते।
विश्व समुदाय के सामने चुनौती यह है कि वह इस टकराव को बातचीत, निरीक्षण और पारदर्शिता के जरिये सुलझाए — वरना मध्य पूर्व फिर एक बार युद्ध की आग में झोंक दिया जाएगा।