दिव्यांगता एक अभिशाप नहीं,लेकिन‘घरौंदा आश्रम’ ने इसे बना डाला भिक्षा का औजार।
वो मासूम चेहरे, जो देख नहीं सकते, चल नहीं सकते… उनके हाथों में थमाई गई भीख की थैली। बुजुर्ग, जिनकी जिंदगी के आखिरी दिन सुकून के होने चाहिए थे, उन्हें चौराहों पर भीख मांगते पाया गया।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रिपोर्ट में ये भयावह तस्वीर उभरी है—जहां न सिर्फ बच्चों से मजदूरी करवाई जाती है, बल्कि देहदान जैसे गंभीर विषयों पर भी मनमानी चल रही है।
यह सवाल अब सिर्फ एक संस्था पर नहीं,दिव्यांग बच्चों और बुजुर्गों से मंगवाई जा रही थी भीख, बिना अनुमति देहदान, आयोग ने जताई मानव तस्करी की आशंका
