Eagle News Special:मासूमियत के नाम पर शर्मनाक सौदा: जब आश्रयगृह बना शोषणगृह

दिव्यांगता एक अभिशाप नहीं,लेकिन‘घरौंदा आश्रम’ ने इसे बना डाला भिक्षा का औजार।

वो मासूम चेहरे, जो देख नहीं सकते, चल नहीं सकते… उनके हाथों में थमाई गई भीख की थैली। बुजुर्ग, जिनकी जिंदगी के आखिरी दिन सुकून के होने चाहिए थे, उन्हें चौराहों पर भीख मांगते पाया गया।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रिपोर्ट में ये भयावह तस्वीर उभरी है—जहां न सिर्फ बच्चों से मजदूरी करवाई जाती है, बल्कि देहदान जैसे गंभीर विषयों पर भी मनमानी चल रही है।
यह सवाल अब सिर्फ एक संस्था पर नहीं,दिव्यांग बच्चों और बुजुर्गों से मंगवाई जा रही थी भीख, बिना अनुमति देहदान, आयोग ने जताई मानव तस्करी की आशंका

सागर, मध्य प्रदेश।
मध्य प्रदेश के सागर जिले से मानवता को झकझोर देने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है। यहां के ‘घरौंदा आश्रम’ में रहने वाले मानसिक व शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों और निराश्रित बुजुर्गों से जबरन भीख मंगवाए जाने और आश्रम संचालक द्वारा बाल श्रम करवाने जैसे गंभीर आरोप सामने आए हैं। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने अपनी जांच में इन तथ्यों की पुष्टि करते हुए जिलाधिकारी को रिपोर्ट सौंपी है।

इस रिपोर्ट ने न सिर्फ प्रशासन को हिलाकर रख दिया है, बल्कि समाज की चुप्पी और संवेदनहीनता पर भी कठोर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि आश्रम के संचालक ने कुछ मामलों में बिना किसी प्रशासनिक अनुमति के बच्चों के मृत शरीरों का देहदान भी कर दिया। आयोग ने इसे किशोर न्याय अधिनियम 2015 का स्पष्ट उल्लंघन मानते हुए एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की है।


क्या है पूरा मामला?

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह की अध्यक्षता में एक टीम ने सागर जिले के इस एनजीओ संचालित आश्रम का दौरा किया। इस दौरान टीम ने पाया कि—

  • आश्रम में रह रहे दिव्यांग बच्चों और बुजुर्गों को सागर शहर के मंदिरों, बाजारों और सार्वजनिक स्थलों पर भेजा जाता था।

  • ये लोग ‘घरौंदा आश्रम’ नामक बैनर के साथ भीख मांगते पाए गए।

  • आश्रम की ओर से यह दावा किया गया कि यह ‘सेवा’ है, लेकिन जांच में सामने आया कि बच्चों से मजदूरी भी करवाई जा रही थी।


बिना अनुमति देहदान और बाल कल्याण समिति को सूचना नहीं

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि आश्रम में कई बार बच्चों की मृत्यु के बाद, उनके शरीरों को मेडिकल रिसर्च या अन्य संस्थानों को दे दिया गया — वह भी बिना किसी प्रशासनिक प्रक्रिया या कानूनी अनुमति के।

यह प्रक्रिया न केवल अनैतिक है, बल्कि यह “मानव देह की गरिमा” का उल्लंघन भी मानी जा रही है।

इसके अतिरिक्त, यह भी सामने आया कि इंदौर और बैतूल जिलों से लाए गए कुछ बच्चों की जानकारी स्थानीय बाल कल्याण समितियों (CWC) को नहीं दी गई। यह किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अनिवार्य है।


मानव तस्करी की आंशका और कानूनी पहलू

आयोग ने रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि जिस तरह से बच्चों को बाहरी जिलों से लाकर यहां रखा गया, और उनकी सूचना कहीं दर्ज नहीं है — उससे मानव तस्करी की आशंका को नकारा नहीं जा सकता।

कानूनी दृष्टिकोण से देखें तो यह निम्न बिंदुओं में गंभीर अपराध बनते हैं:

  • किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 75 (शोषण), 76 (बाल भिक्षावृत्ति), 87 (बाल श्रम)

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 370 (मानव तस्करी), 374 (अवैध श्रम), 304A (लापरवाही से मौत)

  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम और विकलांग अधिकार अधिनियम के भी उल्लंघन की आशंका

आयोग ने जिलाधिकारी को स्पष्ट रूप से कहा है कि पूरे मामले में प्राथमिक दर्ज कर तत्काल कार्यवाही शुरू की जाए।


प्रशासन की चुप्पी भी सवालों के घेरे में

सवाल अब केवल आश्रम की व्यवस्थाओं पर नहीं है, बल्कि इस बात पर भी है कि प्रशासन की निगरानी व्यवस्था कहाँ चूक गई?
क्या संबंधित विभागों ने कभी इस आश्रम की वार्षिक ऑडिटिंग की?
क्या बच्चों के पंजीयन और उनकी काउंसलिंग नियमित रूप से की गई?

यह सवाल पूरे तंत्र पर प्रश्नचिह्न लगात


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