माता के दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी क्यों कहते हैं आखिर कौन थी ब्रह्मचारिणी देवी...

माता के दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी क्यों कहते हैं आखिर कौन थी ब्रह्मचारिणी देवी...

विक्की झा।।जैसा कि आप सभी जानते हैं,नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा स्तुति और आराधना करने का दिन होता है,पर क्या?? आप लोग यह जानते हैं कि,ब्रह्मचारिणी देवी कौन थी,ब्रह्मचारिणी का मतलब होता है?? कठोर तप की चारणी अर्थात नियमित किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तप का आचरण करने वाली देवी को ही"ब्रह्मचारिणी"कहते हैं। 


शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मचारिणी हिमालय की पुत्री गौरी के नाम से धरती पर अवतरित हुई थी,भगवान श्री नारद के उपदेश के बाद, भगवान शिव को सर्वस्व समर्पित कर उन्हें पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मां गौरी ने काफी कठोर तब किए थे,इस कारण से भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने इन्हें "ब्रह्मचारिणी देवी" की उपाधि दी थीं,तभी से माता के दूसरे स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी शास्त्रों में उल्लेखित हो गया है।ब्रह्मचारिणी माता का निस्वार्थ भाव से पूजन करने वाले श्रद्धालु भक्तों को,नवरात्रि के दूसरे दिन इस श्लोक का ध्यान अवश्य करनी चाहिए,

"दधांना कर पहाभ्यामक्षमाला कमण्डलम।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।"


नवरात्रि के नौ देवियों में ब्रह्मचारिणी हमेशा सरल स्वभाव और तपस्विनियों की वेशभूषा में रहती हैं।ब्रह्मचारिणी मां सदैव श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए भक्तों पर कृपा बरसाती रहती है।शिव को पति स्वरूप में पाने के लिए माता ने लगभग 1000 वर्ष तक फल फूल खाकर अपना जीवन निर्वाह किया था,और जमीन पर गद्दे और सभी मोहमाया आराम को त्याग कर शाक की सईया पर कठोर तप किया था,माता के इस कठोर तप के कारण इन्हें तपचारणी अर्थात ब्रह्मचारिणी भी कहा जाता है।शिव की प्राप्ति के लिए इन्होंने कई हजार वर्षों तक निराहार और निर्जल रहकर कठोर तपस्या की थी,जमीन द्वारा उपजे फूल पत्ती से बना खाना छोड़ कर इतना तपोपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए इन्हीं "अपर्णा देवी"भी कहते हैं।

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