यह कैसा संकट है:-
भगवान की मूर्तियां बनाकर बेचने वाले खुद दो वक्त के खाने के लिए भगवान के भरोसे बैठे।
भगवानों की मूर्तियों से श्रद्धा जगाने वाले खुद भगवान की आस में बैठे।
रोज 200 से ₹300 कमाने वाले इन परिवारों को अब ₹50 की आमदनी भी नहीं हो रही है।
विदिशा शहर के बाईपास पर सड़क के किनारे झोपड़ियां बनाकर रहने वाले मूर्तिकारों को दो वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल हो रहा है।
कोरोना महामारी में यह लोग ना तो मास्क के बारे में जानते हैं और ना ही सैनिटाइजर का इनको पता है....
यह तो बस मूर्तियां बेचकर किसी तरह अपना जीवन चलाते हैं...
राजस्थान के उदयपुर जिले के रहने वाले मूर्तिकार पिछले 2 वर्षों से विदिशा जिले की अलग-अलग तहसीलों में मूर्तियां बनाकर और उनको फिर बेचकर पेट पाल रहे हैं।
लेकिन पिछले महीने में कोरोना के कारण इनका व्यवसाय पूरी तरह बंद हो गया है...
कोरोना काल में यह जिस भी गांव में मूर्तियां बैठने जा रहे हैं,वहां के लोग इन्हें गांव में घुसने नहीं देते और कई तो दुर्व्यवहार कर मूर्तियां तोड़ने की बात बोलते है।दूसरी और प्रशासन की सख्ती की वजह से शहर में मूर्ति बेचने नहीं आ रहे हैं।मूर्तिकार का कहना है कि जब से कोरोना शुरू हुआ है,गांव के लोग कोरोनावायरस वाला कहकर भगा देते हैं हमको और शहर में कर्फ्यू के कारण जा नहीं सकते।
किसी तरह कुछ पुराने पैसे जुड़े रखे थे उनसे खर्चा चला रहे थे लेकिन पिछले 1 महीने से कोई मूर्ति नहीं बिकी और अब पुराने पैसे भी खत्म हो गए हैं।