जबलपुर, यदि आप आरटीओ की कार्यप्रणाली से वाकिफ न हों तो जान लें...। कोई भी काम बिना किसी परेशानी के तय समय में कराना हो तो आरटीओ के कार्यालय में जाने की जरूरत भी नहीं है, बाहर ही किसी दलाल को पकड़ें, थोड़ी ज्यादा रकम खर्च करें और निर्धारित समय पर दस्तावेज आपके हाथ में होगा।
लेकिन यदि आप एक जागरूक नागरिक होने के नाते खुद ही अपना काम व्यवस्था के तहत कराना चाहते हैं तो आरटीओ के अंदर जाकर नजारा देख सकते हैं, जहाँ सुबह से लेकर शाम तक लोग इस इंतजार में बैठे होते हैं कि उनका काम कब होगा। ऑनलाइन व्यवस्था आने के बाद उम्मीद बंधी की आरटीओ कार्यालय की कार्यप्रणाली में सुधार आएगा और दलालों का राज खत्म होगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। अधिकारियों ने अपनी कमाई के रास्ते पहले की तरह बना रखे हैं।
ठीक 2 बजे पेपर मिल जाएँगे
यहाँ दलालों का दबदबा कुछ ऐसा है कि उनका काम बिल्कुल तय समय पर होता है। दलालों की फाइलों पर साइन होने का समय दो बजे के आसपास निर्धारित है। वह अपनी-अपनी फाइल लेकर निर्धारित समय पर पहुँचते हैं और उन्हें पाँच से दस मिनट में निबटाकर वापस आ जाते हैं।
ऑनर के लिए मुमकिन नहीं
रजिस्ट्रेशन, लायसेंस की प्रक्रिया को ऑनलाइन किया ही इसलिए गया था कि अवैध वसूली को रोका जा सके। लेकिन वाहन मालिक अगर खुद अपना काम कराना चाहे तो उसके लिए संभव नहीं। पूरे सिस्टम में ऐसे-ऐसे बैरिकेड्स हैं कि फाइल आगे बढ़ ही नहीं सकती। जाहिर है कि एजेंट फाइल को आगे बढ़ाए अथवा वाहन मालिक खुद, ऊपरी खर्च तो लगेगा ही।