पेट में कोरोना....गले से नेगेटिव


भोपाल । कोरोना जांच को लेकर भी मामला बड़ा गोलमाल है... दरअसल कोरोना जांच केवल गले के कफ या नाक के स्लॉब से की जाती है। कोरोना मरीजों को इस जांच के बाद पॉजिटिव या नेगेटिव करार दिया जाता है, लेकिन कई लोगों के कफ से तो संक्रमण चला जाता है, पर पेट में रहकर अंगों में वो अपनी जकड़ बनाए रखता है। इसके चलते जो लोग खुद को नेगेटिव समझकर बेपरवाह हो जाते हैं और सारी दवाइयां बंद कर देते हैं वो दोबारा संक्रमण के शिकार हो जाते हैं। ऐसे लोगों की तादाद सैकड़ों में एक-दो में ही होती है, लेकिन उनके दोबारा पॉजिटिव आने के बाद इस आशंका को बल मिलने लगता है कि कोरोना एक बार जाने के बाद हफ्ते-दो हफ्ते में ही दोबारा हो सकता है। जबकि हकीकत यह है कि जिन मरीजों की रिपोर्ट दोबारा पॉजिटिव आती है, दरअसल उनके गले से कोरोना जाता है, पेट से नहीं और यह संक्रमण बढ़ता हुआ फिर गले तक आ जाता है। यदि संक्रमण पूरी तरह नष्ट हो जाए तो लंबे समय तक दोबारा व्यक्ति संक्रमित नहीं हो सकता।देशभर में ऐेसे प्रकरण सामने आ रहे हैं, जिनमें मरीज की रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद दोबारा लक्षण दिखाई देने पर जांच रिपोर्ट फिर से पॉजिटिव आई है। चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना मरीजों की जांच गले और नाक के स्लाब से की जाती है। गले और नाक में संक्रमण पाए जाने पर मरीज को पॉजिटिव और संक्रमण न होने की स्थिति में नेगेटिव करार दिया जाता है, लेकिन जिन पॉजिटिव मरीजों का इलाज किया जाता है, उनके इलाज में सबसे पहले फेफड़ों को संक्रमण से बचाने के उपाय किए जाते हैं। इस दौरान मरीजों को हाई एंटीबॉयोटिक से लेकर स्टेराइड की टेबलेट भी दी जाती है, जिसके चलते गले और नाक के स्लाब से संक्रमण का पता उसी तरह नहीं लग पाता, जिस तरह बुखार की गोलियां दिए जाने के बाद थर्मामीटर में शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है और गोलियों का असर खत्म होने पर बुखार फिर आ जाता है। उसी तरह दवाइयों के असर के चलते मरीज नेगेटिव हो जाते हैं, लेकिन संक्रमण शरीर के अन्य अंगों में कायम रहता है। मरीज जब नेगेटिव आ जाता है तो फिर लापरवाह होकर दवाइयों से लेकर तमाम एहतियात खत्म कर देता है और कुछ ही दिनों बाद उसके शरीर में लक्षण उभरकर फिर गले तक आ जाते हैं और जांच में वो व्यक्ति फिर पॉजिटिव करार दे दिया जाता है।
कोरोना जांच के बाद ही दी जा सकती है कोरोना की टेबलेट
कई लोग बुखार आने पर एंटीबॉयोटिक टेबलेट लेकर बुखार ठीक करने में लग जाते हैं। इन गोलियों के चलते बुखार तो नियंत्रित हो जाता है, लेकिन कोरोना खत्म नहीं होता। बुखार ठीक होने पर मरीज अपने आपको सामान्य वायरल का मरीज मान लेता है, लेकिन कई बार एंटीबॉयोटिक से कोरोना वायरस समाप्त नहीं होता, क्योंकि एंटीबॉयोटिक का डोज अधिकतम पांच दिन तक चलता है। ऐसे में कोरोना के लंबे समय तक इलाज के लिए डाक्टर फेवी फ्लू टेबलेट का सहारा लेते हैं, जिनके प्रारंभिक डोज पहले-दूसरे दिन आठ-आठ गोलियों के होते हैं और यह दवाइयां लंबे समय तक चलती हैं, लेकिन यह दवाइयां कोरोना जांच के बाद ही ली जा सकती हैं।
केवल में गले में कोरोना, इसलिए कम या बिना लक्षण के मरीज
जिन मरीजों को केवल खांसी आने के बाद या परिवार में किसी व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने पर की गई जांच में पॉजिटिव पाया जाता है। दरअसल कोरोना का वायरस उनके गले तक ही रहता है और तत्काल इलाज शुरू हो जाने से उस संक्रमण का असर शरीर के अन्य अंगों पर नहीं पड़ता, इसीलिए कई मरीज कहते हैं कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव है, लेकिन उन्हें कोई तकलीफ या लक्षण नहीं हैं। ऐसे लोग यदि इलाज में लापरवाही करते हैं तो संक्रमण गले से फेफड़ों और अन्य अंगों तक पहुंच जाता है और स्थिति खतरनाक हो जाती है। कई बार इलाज के बावजूद मरीज में धीरे-धीरे लक्षण नजर आने लगते हैं, जो इलाज के चलते ही घट पाते हैं, लेकिन कई मरीज बिना लक्षण के ही ठीक हो जाते हैं, क्योंकि जल्दी इलाज के चलते संक्रमण गले से आगे नहीं बढ़ पाता। इसीलिए कहा जाता है कि जैसे ही बुखार आए, वैसे ही कोरोना जांच करवाएं और इलाज से न घबराएं।

Post a Comment

Previous Post Next Post
eaglenews24x7

क्या कहते है सितारे