जब आदेश भी रिश्वत के आगे बेबस हो जाए–तब जनता भरोसा कहां करे?
जबलपुर।प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी पर जनता भरोसा क्यों करे?यह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है।मझौली तहसील का मामला सामने है,जहां पटवारी प्रवीण कुमार पटेल ने जमीन बंटवारे का आदेश होने के बावजूद फाइल नहीं चलाई।वजह? महज 6 हजार की रिश्वत।आदेश भी कागज़ का टुकड़ा?
सोचिए,जब बंटवारे का आदेश पहले ही लागू हो चुका था तो फिर घूस की मांग क्यों?क्या सरकारी आदेश अब सिर्फ कागज पर लिखे हुए बेबस दस्तावेज बनकर रह गए हैं,जिन्हें आगे बढ़ाने के लिए अधिकारी की जेब भरना ज़रूरी है?
जनता का दर्द–"न्याय भी बिकाऊ हो गया है"
ग्राम दर्शनी के बिशाली पटेल और उनका परिवार महीनों से परेशान था।आदेश होते हुए भी राहत नहीं मिली।आखिरकार जब लोकायुक्त में शिकायत हुई,तब जाकर पटवारी पकड़ा गया।लेकिन सवाल यह है–हर पीड़ित लोकायुक्त तक कैसे पहुंचेगा?
लोकायुक्त की कार्रवाई,लेकिन सिस्टम का इलाज कहाँ ?
लोकायुक्त पुलिस ने जाल बिछाकर आरोपी को रंगेहाथ पकड़ा।कार्रवाई में पूरी टीम रही–पर क्या इतनी कार्रवाई से भ्रष्टाचार की जड़ें सूख जाएंगी?हर तहसील,हर पटवारी,हर छोटे अफसर के सामने अगर जनता को रिश्वत का धंधा झेलना पड़े तो लोकतंत्र का क्या मतलब रह जाएगा?
कटाक्ष–"6 हजार में न्याय"
आज की हकीकत यही है–आदेश का मूल्य 6 हजार रुपये लगा दिया गया।यह सिर्फ एक पटवारी का मामला नहीं है,यह उस सिस्टम की तस्वीर है जो जनता से टैक्स लेता है,पर सेवाएं रिश्वत लेकर देता है।
