कभी-कभी पोस्ट या ई-मेल से आने वाली एक छोटी-सी सूचना भी आम आदमी के दिल की धड़कनें बढ़ा देती है। इनकम टैक्स नोटिस भी ऐसा ही एक दस्तावेज है, जो ज़्यादातर मामलों में डर पैदा करता है — लेकिन समझदारी से देखा जाए तो यह डर अक्सर बेवजह होता है।
दरअसल, भारत में टैक्स प्रशासन पहले की तुलना में कहीं अधिक डिजिटल, पारदर्शी और संवाद-केंद्रित हो चुका है। ऐसे में अगर आपको आयकर विभाग से नोटिस प्राप्त हुआ है, तो सबसे पहले घबराएं नहीं — बल्कि नोटिस को समझें, समय-सीमा जानें, और सटीक उत्तर दें।
नोटिस मतलब मुसीबत नहीं — यह एक संवाद है
आयकर विभाग का नोटिस एकतरफा चेतावनी नहीं है, बल्कि यह अक्सर आपके और विभाग के बीच के अंतर को स्पष्ट करने का एक अवसर होता है। अधिकांश नोटिस दो कारणों से आते हैं:
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आपके रिटर्न में दी गई जानकारी और
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सरकारी पोर्टल (Form 26AS या AIS) पर उपलब्ध डेटा — इन दोनों में मेल न होना।
जैसे बैंक ब्याज, शेयर बाजार से कमाई, या अन्य स्रोतों से प्राप्त आय की सूचना छूट गई हो — तो सिस्टम इन विसंगतियों को पहचान कर स्वचालित रूप से नोटिस जारी करता है।
आइए समझते हैं, नोटिस किन धाराओं के तहत आता है और उसका क्या मतलब है
धारा 143(1): कम्प्यूटेशन आधारित अंतर
यह प्रारंभिक स्तर की प्रक्रिया है। आपके द्वारा भरे गए ITR और विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों — जैसे कि TDS, बैंक ब्याज, निवेश आदि के बीच तुलना की जाती है। यदि कोई मामूली अंतर पाया जाता है, तो ईमेल या पोर्टल पर Intimation के रूप में नोटिस आता है।
उदाहरण: आपने बैंक ब्याज की राशि ₹12,000 कम दिखा दी, जबकि 26AS में वह ₹18,000 है।
धारा 139(9): ‘Defective Return’ नोटिस
यदि आपने कोई ज़रूरी जानकारी छोड़ दी है या फॉर्म अधूरा या गलत भरा है, तो विभाग इस धारा के तहत नोटिस भेजता है। आपको यह नोटिस सुधार के लिए मिलता है।
उदाहरण: आपने आय तो बताई लेकिन TDS की जानकारी नहीं दी, या छूट का दावा बिना दस्तावेज के किया।
धारा 143(2): विस्तृत Scrutiny
यह थोड़ा गंभीर नोटिस होता है। इसका मतलब यह है कि आयकर अधिकारी आपके दावों, कटौतियों और आय के स्रोतों की गहराई से जांच करेगा। यह नोटिस चयनित मामलों में आता है — ज़्यादातर जहां हाई-वैल्यू ट्रांजेक्शन या विसंगति पाई गई हो।
यहां सावधानी से जवाब देना जरूरी होता है और अक्सर पेशेवर सलाह की जरूरत पड़ती है।
Form 26AS और AIS से करें अपनी आय का मिलान
अब करदाता के पास दो प्रमुख डिजिटल रिपोर्ट होती हैं:
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Form 26AS: आपके TDS, बैंक ब्याज, शेयर या प्रॉपर्टी के ट्रांजेक्शन आदि का रिकार्ड
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AIS (Annual Information Statement): अधिक विस्तृत रिपोर्ट — इसमें आपके डिजिटल खर्च, विदेशी यात्रा, म्यूचुअल फंड निवेश आदि की भी जानकारी होती है
यदि आपके ITR में दी गई कोई आय इसमें दर्ज न हो, तो यह अंतर नोटिस का कारण बन सकता है।
नोटिस की तारीख और समयसीमा को गंभीरता से लें
हर नोटिस में स्पष्ट रूप से जारी होने की तारीख और जवाब देने की समय-सीमा (अक्सर 15-30 दिन) दी गई होती है। इस सीमा का पालन बेहद जरूरी है, क्योंकि ऐसा न करने पर:
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रिटर्न को एकतरफा तरीके से प्रोसेस किया जा सकता है
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जुर्माना, ब्याज, या अस्वीकृत कटौतियों का सामना करना पड़ सकता है
डिजिटल जमाने में ई-मेल, SMS या इनकम टैक्स पोर्टल पर नोटिस आना आम बात है। इसे नजरअंदाज न करें।
घबराने की नहीं, मदद लेने की जरूरत होती है
यदि नोटिस सामान्य है — जैसे कि 143(1) या 139(9) — तो आप स्वयं भी जवाब दे सकते हैं, खासकर यदि आपने ITR सही तरीके से फाइल किया है।
लेकिन यदि नोटिस में:
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धारा 143(2) के तहत स्क्रूटिनी
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धारा 148 के तहत पुराने सालों का पुनर्मूल्यांकन
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या कोई दंडात्मक अनुच्छेद का उल्लेख है
तो यह ज़रूरी है कि आप किसी सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट), टैक्स कंसल्टेंट या वित्तीय सलाहकार से मार्गदर्शन लें।
कुछ सामान्य लेकिन ध्यान देने योग्य कारण जिनसे नोटिस आ सकता है:
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बैंक FD के ब्याज की सूचना देना भूल जाना
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क्रेडिट कार्ड से भारी खर्च की रिपोर्ट का मेल न होना
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ज़रूरत से ज़्यादा कटौती का दावा
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80G, 80C जैसी छूट का गलत उपयोग
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संपत्ति बिक्री से पूंजीगत लाभ की सूचना न देना
निष्कर्ष: टैक्स नोटिस से लड़ना नहीं, संवाद करना है
एक ज़िम्मेदार करदाता के नाते, हमें न सिर्फ सही तरीके से टैक्स भरना चाहिए, बल्कि यदि कोई विसंगति है तो उसे स्वीकार कर सुधार भी करना चाहिए।
नोटिस डराने के लिए नहीं होता, वह एक दर्पण है — जो दिखाता है कि हमने कहां और क्या चूका है।
विशेष टिप्पणी:
"करदाता को नोटिस मिलने पर उसे मानसिक तनाव नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में लेना चाहिए। जल्दी और सटीक उत्तर ही सबसे बेहतर तरीका है।"
— आदिल शेट्टी, CEO, बैंक बाजा