जबलपुर, छात्रों के लिए मुश्किल हो रहा शरीर संरचना का ज्ञान आरटीपीसीआर निगेटिव के साथ सर्टिफिकेट भी जरूरी।
कोरोना संकट का असर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों पर भी हो रहा है। इसके चलते मेडिकल कालेज में देहदान नहीं हो रहा जिससे मेडिकल छात्रों को शरीर संरचना के विषय में प्रैक्टिल जानकारी हासिल करने में परेशानी हो रही है। दूसरी ओर पार्थिव देहदान के लिए मेडिकल कालेजों के लिए जो गाइडलाइन तय की गई है उसके कड़े प्रावधान पूरा करने के बजाय लोग अंतिम संस्कार करना ही बेहतर समझ रहे हैं।
देश में कहीं नहीं हुआ देहदान
जानकारी के अनुसार यह समस्या सिर्फ जबलपुर ही नहीं देश के सभी मेडिकल कालेजों की है, जहाँ कोरोना संकट के दौरान एक भी देहदान नहीं हुआ है। मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के साथ ही शरीर संरचना की जानकारी के लिए मृत देह की उपयोगिता शुरू हो जाती है, इसके अलावा सर्जरी के पूर्व व पीजी छात्रों को भी पढ़ाई के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज के लिए इसकी जरूरी होती है।
छात्रों को बचाने कड़े नियम
कोरोना की शुरूआत होते ही मेडिकल कालेजों को मृत देह लेने के लिए गाइडलाइन जारी की गई। इसमें परिवार की सहमति, संबंधित थाने में सूचना के साथ ही डॉक्टर द्वारा जारी मृत्यु प्रमाणपत्र के पुराने नियमों के साथ ही नई शर्तें शामिल की गई हैं।
अब मृत परिजन की देहदान के लिए उसका आरटीपीसीआर कोविड टेस्ट निगेटिव होने के साथ ही डॉक्टर का यह प्रमाणपत्र जरूरी है कि मृतक को सर्दी-खाँसी, बुखार सहित कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे। यह नियम छात्रों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए बनाए गए हैं। जानकारों का कहना है कि यदि कोई पॉजिटिव बॉडी का दान होता है तो उसे केमिकल प्रिजर्व करने वाले स्टाफ के साथ ही बड़ी संख्या में छात्रों के संक्रमित होने का खतरा बनता है। 10 छात्रों के लिए एक बॉडी का होना जरूरी है लिहाजा देह दान का महत्व और बढ़ जाता है।