कान्हा जाने में वैकल्पिक मार्ग का सहारा वह भी तकलीफों भरा तो दूसरी तरफ पचमढ़ी की सड़क एकदम जर्जर


जबलपुर, शहर से किसी भी पर्यटन स्थल तक जाएं सभी की सड़क दम तोड़ चुकी टूरिस्ट सर्किट बनाना तो दूर यहां तक सहज पहुंचने के लिए उठाना पड़ता है जोखिम।

शहर के आसपास नेशनल पार्क और पर्यटन के अन्य स्थलों को एक टूरिस्ट सर्किट से जोड़ने का ख्वाब दिखाने वाले इन स्थलों में संसाधन और विकास के काम कराना तो दूर इन तक पहुँचने के लिए कभी सलीके की सड़कें तक नहीं बनवा सके। जबलपुर के आसपास जितने भी राष्ट्रीय उद्यान और पर्यटन केन्द्र हैं उनमें हालत यह है कि पर्यटक सहज रूप में कहीं नहीं जा सकते हैं।

कहीं शुरूआत में जर्जर सड़क तकलीफों को बढ़ाती है तो कहीं बीच में दशा खराब है तो कहीं एकदम करीब पहुँचकर सड़क पर्यटकों का मन खिन्न कर देती है। सोचने वाली बात यह है कि कई पर्यटन स्थलों तक पहुँचने के लिए तो आज भी दशकों पुराने मार्ग का ही उपयोग किया जा रहा है। जो दशा दशकों पहले थी अब भी वही है। तनिक भी सुधार वादों और दावों के बाद नहीं हो सका है। प्रकृति ने जबलपुर और आसपास के एरिया को सुंदरता, विहंगम दृश्यों, साफ झरनों और वन्य जीवों से नवाजा तो जरूर पर यहाँ सड़क मार्ग का उपयोग कर पहुँचना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

कान्हाः शेर के दीदार से पहले गड्ढ़ों से सामना
जबलपुर से यदि कान्हा कुण्डम, निवास और मण्डला होते जा रहे हैं तो सड़क सँकरी है। कुण्डम के आगे जंगली सड़क में गड्ढे और सँकरा हिस्सा वाहन की गति को बढ़ने नहीं देते हैं। इसी तरह गौर बरेला के बाद निवास-मण्डला से कान्हा जा रहे हैं तो यह सड़क करीब 15 से 17 किलोमीटर के हिस्से में गायब जैसी है। इसमें चलने के दौरान परेशानी हर हाल में होगी। मुख्य मार्ग जो बीजाडाण्डी होकर जाता है वो तो पिछले छह सालों से बन रहा है लेकिन अब तक इसका ठिकाना नहीं है। इस तरह एक उपयोगी नेशनल पार्क की सड़क बड़े हिस्से में परेशानियों से भरी हुई है।

पचमढ़ीः बस 25 किमी चलते ही परीक्षा
विंटर के सीजन में यदि आपने सोचा है कि पचमढ़ी जबलपुर से सड़क मार्ग से जायेंगे तो जैसे ही आपकी गाड़ी शहपुरा की ओर बढ़ेगी तो धूल और गड्ढों से सामना हो जाएगा। शुरूआत में लगता है कि पचमढ़ी तक पहुँचने में बहुत तकलीफ होने ही वाली है। शहपुरा, नरसिंहपुर और फिर पिपरिया की सीमा तक अच्छी खासी फजीहत से गुजरना पड़ता है। इस मार्ग का रखरखाव अब होता ही नहीं है। आगे लग भी नहीं रहा है कि किसी तरह से सुधार हो सकता है। पचमढ़ी तक परेशानी से बचने सिवनी-छिंदवाड़ा-तामिया से भी जाते हैं लोग।

भेड़ाघाटः भीतरी मार्ग चौड़ा बने तभी कुछ राहत मिलेगी
मुख्य सड़क एनएच-12 बनाई जा रही है, इसमें भेड़ाघाट चौराहे तक अभी तेवर में अधूरा निर्माण, भेड़ाघाट चौराहे में अंडर व्हीकल पास अधूरा होने से परेशानी है। इसी के साथ चौराहे के गेट से भेड़ाघाट गाँव तक जो 4 किलोमीटर का हिस्सा है इसका चौड़ा होना जरूरी है। यह सड़क जब तक नहीं बनती तो अंधमूक चौराहे से भेड़ाघाट चौराहे तक सपाट सड़क बनने से भी पूरी राहत नहीं मिल सकती है। फाॅल और पंचवटी के करीब तक पहुँचने में रास्ता अब भी समस्याओं से भरा है।

बाँधवगढ़ः जिसका उपयोग ज्यादा वही रास्ता अंधे मोड़ वाला
बाँधवगढ़ के ताला गेट तक जाने के लिए आमतौर पर लोग कुण्डम, शहपुरा, उमरिया रास्ते का उपयोग करते हैं। इस रास्ते में सड़क चौड़ी न होना गति पर असर डालता है साथ ही अंधे मोड़ कई खतरा पैदा करते हैं। केन्द्रीय सड़क मंत्रालय ने इन अंधे मोड़ों को एक समिति से जाँच कराकर चौड़ा करने का निर्णय लिया। इसके बाद इस मार्ग पर छोटी पुलिया में 6 ब्रिज बन रहे हैं लेकिन ये ब्रिज जब तक नहीं बन जाते हैं इस मार्ग में सँकरा और मोड़ वाला हिस्सा मुसीबत पैदा करता रहेगा। बेहतर यह है कि जबलपुर-कटनी-उमरिया रोड पर चला जाए, जो टोल रोड है पर एकदम चिकनी-सपाट।

पेंचः सिवनी के आगे परेशानी बरकरार
इस राष्ट्रीय उद्यान में जाने के लिए सिवनी के आगे जब मुख्य सड़क का सहारा लेते हैं तो कर्माझिरी गेट तक जाने में अभी चल रहा सड़क का निर्माण कुछ परेशानी पैदा करता है। जबलपुर-नागपुर रोड में सिवनी से आगे बड़े वाहन जाना अब भी बंद हैं, निर्माण जो हो रहा है उसकी वजह से पेंच तक पहुँचने में जद्दोजहद से गुजरना पड़ता ही है। काफी कम दूरी होने के बावजूद इस डेस्टिनेशन की राह उतनी भी आसान नहीं है।

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