इंदौर के मोहल्लों में अब कचरा गाड़ी की आवाज़ पर बच्चे नाचते हैं और बड़े मुस्कराते हैं — क्योंकि यह आवाज़ 'हल्ला बोल' की है।
जब नागरिक खुद गाना गुनगुनाएं — "हो हल्ला, हो हल्ला..." — तो समझ लीजिए यह अभियान प्रशासनिक नहीं, आत्मिक बन चुका है।
देवरिषि और नरहरि की जोड़ी ने प्रचार को जन चेतना में बदल दिया। स्वच्छता अब नियम नहीं
जब बाकी शहरों में सफाई को लेकर विज्ञापन होर्डिंग्स लगाई जा रही थीं, इंदौर ने एक 'लव सॉन्ग टाइप' कचरा गीत से लोगों का दिल जीत लिया।
‘हो हल्ला’ पहले फिल्मी लगा, फिर दिल में बसा।
म्युनिसिपल कमिश्नर बोले – “पाँच दिन चलाओ, फिर देखेंगे…”
अब तो हालत यह है कि लोग कहते हैं – “अगर शादी में हल्ला नहीं बजा, तो शादी क्या हुई!”
क्या यह सिस्टम की चालाकी थी या सच्चा क्रिएटिव प्रयोग?
शायद दोनों। लेकिन नतीजा सामने है — आठ बार सबसे स्वच्छ शहर का ताज।
बाकी शहर भी ये समझ लें — जागरूकता की आवाज़ अगर धुन में हो, तो जनता झाड़ू से पहले तालियों से सफाई शुरू कर देती है।।