“बेटा, हर साल हम गुरुपूर्णिमा पर सिमरिया जरूर जाते हैं, इस बार बस नहीं आई...” — यह दर्द है रामकली बाई का, जो गुरुवार की सुबह अपने परिवार संग मंदिर जाने निकली थीं, लेकिन बस की जगह सड़क पर मायूसी मिली।
पूरे जिले में बस ऑपरेटरों की अचानक हड़ताल से गुरुपूर्णिमा का उत्सव जैसे थम सा गया। कोई सौसर में अपने गुरुदेव के दर्शन करने से चूक गया, तो कोई रामेश्वरम की परिक्रमा अधूरी छोड़ लौट गया।
बस ऑपरेटर कहते हैं, “जब रुकने की जगह तय नहीं, तो रुकने पर चालान क्यों?” सवाल सीधा है, जवाब प्रशासन के पाले में है। बुधवार को जो बैठक हुई, वह कागजों तक सीमित रह गई, और गुरुवार को सड़कों पर सन्नाटा फैल गया।
कई यात्रियों ने ऑटो या निजी गाड़ियों से जाने का प्रयास किया, पर किराया दोगुना था और सवारी आधी। मंदिरों के बाहर चप्पलें तो थीं, पर दर्शनार्थी कम।
गुरुपूर्णिमा सिर्फ एक पर्व नहीं, गांव-गांव की आस्था और परंपरा का उत्सव है। यह आस्था आज अफसरशाही और अव्यवस्था के बीच पिसती दिखाई दी।