लाखों खर्च करने के बाद भी नगर निगम नहीं कर पा रहा मच्छरों को नियंत्रित


जबलपुर, नगर निगम के ठीक सामने सिविक सेंटर के इस तालाब में मच्छरों की बड़ी फौज पनप रही है और वह बेखबर है, तो बाकी शहर का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसी लापरवाही पूरे शहर पर भारी पड़ सकती है।

निजी अस्पतालों में मलेरिया रोगियों की संख्या बढ़ी, सिविक सेंटर जैसे व्यावसायिक क्षेत्र में 5 मिनट खड़े नहीं होने दे रहे मच्छर

कोरोना का प्रकोप जब कुछ कम हुआ तो लोगों ने राहत की साँस ली, लेकिन मच्छरों को यह राहत पसंद नहीं आई और उन्होंने दोगुनी तेजी से अटैक कर दिया। अब हालत यह है कि शाम होते ही मच्छरों की फौज हमला कर देती है, जिससे लोगों को मलेरिया की बीमारी जकड़ रही है। नगर निगम का स्वास्थ्य अमला अभी तक कोरोना से बचाव के लिए सेनिटाइजेशन के कार्य में ही जुटा हुआ था, लेकिन अब दावा किया जा रहा है कि सेनिटाइजेशन कम करके मच्छरों पर नियंत्रण किया जाएगा।

यह अलग बात है कि निगम की फॉगिंग मशीनें निकलती तो रोज हैं, लेकिन वे चलती कहाँ हैं यह किसी को मालूम ही नहीं होता, जबकि केवल मच्छरों को मारने के नाम पर ही लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। इस मामले में यदि लापरवाही ऐसे ही जारी रही तो कोरोना मरीजों से खाली होने वाले बेड मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों के लिए रिजर्व हो जाएँगे।बारिश के बाद मच्छरों की संख्या बेतहाशा बढ़ती है और इसके कारण मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों की बाढ़ आ जाती है। इस वर्ष अभी तक कोरोना के कारण किसी और बीमारी या बचाव पर नगर निगम ने ध्यान ही नहीं दिया। यही कारण है कि मच्छरों को पलने और बढ़ने का मौका मिल गया और अब वे लगातार हमला कर रहे हैं।

पानी के स्त्रोतों पर ध्यान नहीं
मच्छरों की पैदाइश मुख्य रूप से पानी के स्त्रोतों के आसपास ही होती है। सिविक सेंटर में पुराने कैफेटेरिया में अभी भी तालाब का एक बड़ा हिस्सा बचा हुआ है और उसमें हर समय पानी भरा होता है। यहाँ से मच्छरों की बम्पर पैदावार होती है जो पूरे क्षेत्र को हलाकान कर देती है। सिविक सेंटर का मुख्य नाला भी खुला हुआ है जिसमें मच्छरों की भरमार है।

डीटीडी बेअसर, मेलाथियॉन से भी कामयाबी नहीं
मच्छरों को मारने के लिए पहले डीटीडी का इस्तेमाल होता था, लेकिन यह प्रकृति के लिए नुकसानदायी साबित हुआ तो डीटीडी का उपयोग बंद करना पड़ा। अब मेलाथियॉन का छिड़काव कराया जा रहा है, लेकिन मच्छरों ने इसे भी बेअसर साबित कर दिया है, लेकिन अभी तक कोई नया केमिकल सामने नहीं आया है जो मच्छरों को मारने में असरदार साबित हो इसलिए उसी का उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही कुछ जगह पेरेथ्राइड का इस्तेमाल भी हो रहा है, लेकिन वह भी बहुत असरकारक नहीं है।

हर माह केमिकल्स पर लाखों खर्च
नगर निगम मच्छरों को मारने के लिए मेलाथियॉन और किंगफाग का छिड़काव करता है। इसमें मेलाथियॉन का रोजाना करीब 15 से 20 लीटर उपयोग किया जाता है, जबकि किंगफाग का 3 से 5 लीटर। दोनों ही केमिकल पर प्रति माह 6 लाख से अधिक की राशि खर्च होती है इसमें यदि डीजल, वाहन और कर्मचारियों का खर्च भी जोड़ दिया जाए तो यह राशि 10 लाख से अधिक की हो जाती है।

ये है निगम की ताकत
79 वार्डाे में से 38 वार्डों में सफाई का कार्य ठेके पर होता है। बचे हुए 41 वार्ड निगम के हिस्से में हैं और निगम के 1500 नियमित कर्मी हैं, 448 संविदा कर्मी हैं, 1200 ठेके के कर्मी हैं। ठेकेदार की ओर से 220 वाहन चलते हैं, निगम के अपने खुद के 258 ट्रिपर चलते हैं जो कि डोर-टू-डोर व्यवस्था में लगे हैं, 200 अन्य वाहन हैं जिनमें जेसीबी, डम्पर, ट्रैक्टर आदि शामिल हैं। इन सारे साधनों पर निगम 90 से 100 करोड़ रुपए खर्च करता है। इसके बाद भी 79 वार्डों के लिए 79 फाॅगिंग मशीन नहीं हैं।

8 टीमें कर रहीं मच्छरों पर नियंत्रण
कोरोना पर ही अधिक ध्यान दिया गया, लेकिन अब 8 टीमों के माध्यम से मच्छरों पर नियंत्रण का प्रयास हो रहा है। 5 बड़ी फॉगिंग मशीनों को लगाया गया है और हर जोन में हैंड फाॅगिंग मशीनों से कार्य कराया जा रहा है। अब जल्द ही हर वार्ड में मच्छरों को नियंत्रित करने टीमें भेजी जाएँगी।
-भूपेन्द्र सिंह, स्वास्थ्य अधिकारी नगर निगम

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