अनूपपुर।। रविवार की रात जब अधिकतर घरों में लोग बारिश की बूंदों की आवाज़ सुनते हुए चैन की नींद सो रहे थे, ठीक उसी वक्त राजेंद्रग्राम के समीप एक पुलिया ने चार जिंदगियों को निगल लिया। तेज़ बारिश के चलते सजहा वेयरहाउस के पास नाला उफान पर था। इसी दरम्यान अमरकंटक से लौट रहा एक परिवार – चंद्रशेखर यादव, उनकी पत्नी प्रीति और दो मासूम बच्चे – बहते पानी में फंस गए।
पुलिया की जर्जर स्थिति और अधिकारियों की लापरवाही का परिणाम यह हुआ कि कार पानी में बह गई। महिला का शव मिल चुका है, पर पति और दोनों बच्चे अब भी लापता हैं। घटनास्थल पर मौजूद पुलिस और एनडीआरएफ टीम की आंखों में थकान से ज्यादा बेबसी दिखती है। सवाल ये है कि क्या ये मौतें रोकी जा सकती थीं?कितनी और ज़िंदगियां बहेंगी प्रशासन की उदासीनता में?
अनूपपुर के सजहा पुलिया हादसे ने एक बार फिर बता दिया कि ‘प्राकृतिक आपदा’ का नाम लेकर जिम्मेदारियां टाली जा सकती हैं, इंसानी ज़िंदगियां नहीं।
जर्जर पुलिया, कोई चेतावनी नहीं, कोई बैरिकेड नहीं और ना ही कोई चौकीदार—बस बारिश आई और एक खुशहाल परिवार उजड़ गया।
क्या यह पहली घटना है? नहीं।
क्या अगली बार हम तैयार होंगे? शायद नहीं।
अगर एक बस बहते नाले को पार कर गई, तो क्या यह संकेत नहीं था कि प्रशासन को यहां चौकसी करनी चाहिए थी?
क्या ऐसे पुलों पर चेतावनी बोर्ड और गार्ड जरूरी नहीं हैं?
सवाल अनगिनत हैं। जवाब... लापता।