हर नागरिक को मिले सालाना मुफ्त स्वास्थ्य जांच का कानूनी अधिकार: राघव चड्ढा की पहल पर राष्ट्रीय बहस

राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के युवा नेता राघव चड्ढा ने स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में एक ऐतिहासिक मांग उठाई है। उन्होंने संसद में यह प्रस्ताव रखा कि भारत के हर नागरिक को साल में कम से कम एक बार मुफ्त और अनिवार्य स्वास्थ्य जांच का कानूनी अधिकार मिलना चाहिए। उनका यह सुझाव न केवल स्वास्थ्य नीति के मौजूदा स्वरूप पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि एक ऐसी समावेशी व्यवस्था की मांग करता है, जो भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

महामारी के बाद बदले परिदृश्य में एक दूरदर्शी प्रस्ताव

कोविड-19 महामारी के बाद भारत में हार्ट अटैक, स्ट्रोक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और कैंसर जैसी गैर-संचारी बीमारियों (NCDs) के मामले चिंताजनक रूप से बढ़े हैं। महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि बीमारी जब तक लक्षणों में प्रकट हो, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। राघव चड्ढा की यह दलील कि समय पर जांच से जीवन बचाया जा सकता है, आज के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सटीक बैठती है।

चड्ढा का यह भी कहना है कि स्वास्थ्य केवल अमीरों की सुविधा नहीं होनी चाहिए। यदि कोई गरीब व्यक्ति भी प्रारंभिक अवस्था में किसी गंभीर बीमारी की पहचान करा सके, तो उसका जीवन बचाना आसान हो सकता है। यह मांग स्वास्थ्य के सामाजिक अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस की ओर इशारा करती है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: क्या भारत पीछे है?

सांसद ने उदाहरणस्वरूप कई विकसित देशों का जिक्र किया, जहां सरकारें नागरिकों को सालाना फुल बॉडी हेल्थ चेकअप मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन का NHS (National Health Service) हर नागरिक को GP सेवा के माध्यम से समय-समय पर जांच की सुविधा देता है। स्कैंडिनेवियाई देश, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश इसमें और भी आगे हैं, जहां सरकारें निवारक स्वास्थ्य सेवाओं में भारी निवेश करती हैं।

भारत में अब तक यह सोच हावी रही है कि बीमारी हो जाने पर इलाज जरूरी है, पर बीमारी की रोकथाम पर उतना ध्यान नहीं दिया गया। यह मानसिकता अब बदलने की जरूरत है और राघव चड्ढा की यह मांग इसी बदलाव की ओर पहला कदम हो सकती है।

जमीनी पहल और मोदी सरकार का अभियान

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने भी इस दिशा में 2025 तक NCDs को नियंत्रित करने के लक्ष्य के तहत एक बड़ा कदम उठाया है। देशभर के आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (अब 'आरोग्य मंदिर') में 30 वर्ष और उससे अधिक उम्र के नागरिकों की डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, ब्रेस्ट कैंसर, ओरल और सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए अभियान चलाया गया, जिसमें 89.7 प्रतिशत लक्ष्य भी हासिल किया गया।

लेकिन सवाल यह है कि क्या ये पहलें स्थायी और समावेशी होंगी? क्या इन्हें केवल कैंपेन तक सीमित रखा जाएगा, या यह नागरिक अधिकार के रूप में वैधानिक दर्जा पाएंगी?



स्वास्थ्यके अधिकार का सवाल: केवल नारा या ज़रूरत?

भारत में शिक्षा की तरह स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की चर्चा वर्षों से होती रही है, लेकिन कोई ठोस कानून अब तक नहीं बना। राघव चड्ढा की यह मांग नीतिगत बदलाव के लिए एक चिंगारी बन सकती है। यदि सरकारें राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर इस विषय को राष्ट्रीय प्राथमिकता दें, तो भारत में बीमारियों से लड़ाई नहीं, उनसे बचाव का युग शुरू हो सकता है।

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